पर्यटन मंत्रालय के वेबिनार में सामने आये जलियांवाला बाग नरसंहार से जुड़े अनछुए पहलू
नयी दिल्ली। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के ‘देखो अपना देश’ वेबिनार श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित वेबिनार में जलियांवाला बाग नरसंहार से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में बताया गया।
पर्यटन मंत्रालय ने सोमवार को यह जानकारी दी कि ‘ देखो अपना देश’ वेबिनार श्रृंखला के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस के विषय पर केंद्रित “जलियांवाला बाग: स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़” विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया । यह वेबिनार पार्टिशन म्यूजियम की अध्यक्ष एवं ‘जलियांवाला बाग, 1919 द रियल स्टोरी’ किताब की लेखिका किश्वर देसाई द्वारा प्रस्तुत किया गया। सुश्री देसाई ने उन भयावह कृत्यों के बारे में बताया गया जिसके कारण सैकड़ों बेगुनाहों की हत्या की गई और कैसे इस सामूहिक नरसंहार ने बाद के दिनों में पूरे देश को ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट किया।
सुश्री देसाई ने जलियांवाला बाग नरसंहार से पहले अमृतसर और शेष भारत की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने रॉलेट एक्ट या काला अधिनियम के बारे में बताया जो ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया एक कठोर अधिनियम था, जिसमें पुलिस को बिना किसी कारण के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार प्रदान कर दिया था। इस अधिनियम का उद्देश्य देश में बढ़ती हुए राष्ट्रवादी लहर पर अंकुश लगाना था।
उन्होंने बताया कि जलियांवाला बाग उस समय एक बंजर भूमि थी जहां पर लोग प्रायः मिलते रहते थे और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए उसका उपयोग करते रहते थे। डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, अमृतसर शहर के जाने-माने राष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह का आयोजन किया। जलियांवाला बाग में हुई शांतिपूर्ण सभा में सभी संप्रदायों के लोगों ने भाग लिया। इससे अंग्रेजों के बीच बहुत सारी भ्रांतियां और गलतफहमी फैल गई। ब्रिटिश सरकार ने डॉ. किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी का आदेश दिया। उनकी गिरफ्तारी की खबर से अमृतसर के लोगों के बीच से कड़ी प्रतिक्रिया आई।
इसके बाद नौ अप्रैल 1919 को महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया और लोगों को उनकी गिरफ्तारी के पीछे का कोई भी कारण समझ में नहीं आ रहा था। गांधी जी की गिरफ्तारी की खबर जब 10 अप्रैल को अमृतसर पहुंची तो सड़कों पर बड़ी संख्या में उग्र हुए लोगों की भीड़ जमा हो गई। ब्रिटिश बैंकों में आग लगा दी गई और तीन बैंक प्रबंधकों की हत्या कर दी गई। यह हिंसा 10 और 11 अप्रैल तक जारी रही। पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने में असमर्थ होने के बाद, शहर में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। कलेक्टर ने ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर को कार्यभार सौंप दिया, जो गोरखा और पठान सैनिकों की टुकड़ी के साथ आए थे।
पंजाब में मार्शल लॉ का शासन बहुत ही कठोर था। डाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मंदिरों और मस्जिदों में उपासकों का जाना प्रतिबंधित कर दिया गया। जिन लोगों की राजनीतिक संबद्धता संदिग्ध पाई गई थी, उनके घरों में बिजली और पानी की आपूर्ति को रोक दिया गया। इससे भी बदतर स्थिति तब उत्पन्न हुई जब चुनिंदा विद्रोहियों पर सार्वजनिक रूप से कोड़े बरसाए गए; और एक आदेश जारी किया गया जिसमें उन सभी भारतीयों को सड़क पर रेंगने के लिए मजबूर कर दिया गया, जिन्होंने महिला मिशनरी पर हमला होते हुए देखा था।
डायर ने 13 अप्रैल 1919 को सभी प्रकार की बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध की इस सूचना को व्यापक रूप से फैलाया नहीं गया था और इसीलिए कई ग्रामीण इस बाग में बैसाखी को मनाने और दो राष्ट्रीय नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और निर्वासन का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए एकत्रित हुए। डायर और उसके सैनिकों ने बाग में प्रवेश किया, उनके बाद मुख्य प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दिया। उन्होंने ऊंचाई पर स्थित एक जगह पर मोर्चा संभाल लिया और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर दस मिनट तक लगातार गोलीबारी की, उसने अपनी गोलियों का रुख बहुत हद तक उन कुछ खुले हुए फाटकों की ओर रखा जिसके माध्यम से लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे थे, गोलियां तब तक बरसती रहीं जब तक कि गोला-बारूद लगभग समाप्त नहीं हो गया। लगभग 1,650 राउंड गोलियां चलाई गईं। कई छोटे-छोटे बच्चों की मौत हो गई और केवल दो महिलाओं के ही शव प्राप्त हो सके। इस नरसंहार के तीन महीने बाद, मौतों की संख्या की जानकारी के लिए लाशों की गिनती की गई। यह एक बहुत बड़ा नरसंहार था और इसमें 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। घायलों को कोई मेडिकल सेवा प्रदान नहीं की गई।
ब्रिटिश सरकार द्वारा इन घटनाओं की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया और हंटर कमीशन रिपोर्ट में अमृतसर की घटनाओं से संबंधित प्राप्त साक्ष्यों को शामिल किया गया। मार्च 1920 में, प्रस्तुत की गई अंतिम रिपोर्ट में, समिति ने सर्वसम्मति से डायर के कार्यों की निंदा की। हालांकि, हंटर समिति ने जनरल डायर के खिलाफ कोई भी दंडात्मक या अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा नहीं की।
रवींद्रनाथ टैगोर ने इसके विरोध में अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि का त्याग दी और महात्मा गांधी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी, जो उन्हें बोअर युद्ध के दौरान उनके काम के लिए अंग्रेजों द्वारा सम्मान के रूप में प्रदान की गई थी।
पर्यटन मंत्रालय अपनी विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत, पर्यटन अवसंरचनाओं और सुविधाओं के विकास पर आवश्यक बल दे रहा है। वर्तमान में, जलियांवाला बाग का जीर्णोद्धार और उन्नयन किया जा रहा है और स्मारक स्थल पर संग्रहालय/ दीर्घाएं और साउंड एंड लाइट शो स्थापित किए जा रहे हैं।
This talk will explore the oppression that led up to the terrible massacre of 13 April 1919 at Jallianwala Bagh in Amritsar. And importantly,it will examine how this massacre was the spark that lit the Freedom Struggle. Please register here: https://t.co/VqQ9o5k6NC#DekhoApnaDesh pic.twitter.com/aPKwdL1Dg9
— Ministry of Tourism (@tourismgoi) August 13, 2020