अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष ,और भीषण हो सकता है यह युद्ध

अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष ,और भीषण हो सकता है यह युद्ध

Newspoint24.com/newsdesk/अरविंद कुमार शर्मा/


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अरविंद कुमार शर्मा

अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष ईरान की चेतावनी के बाद पहले से और अधिक भयंकर रूप ले सकता है। ईरान ने कहा है कि दोनों देशों के बीच लड़ाई ‘क्षेत्रीय युद्ध’ भड़का सकती है। कुछ रिपोर्ट में यह जानकारी आयी है कि अर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध में उत्तरी सीमा से लगे ईरान के कुछ गांवों में भी गोले गिरे हैं। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी इन्हीं घटनाओं का हवाला देते हुए चेतावनी देते हैं कि ईरान की जमीन पर गलती से भी मिसाइल या गोले गिरे तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। किसी भी कीमत पर हम इसे बर्दास्त नहीं करेंगे। हम किसी भी स्थिति में अपने शहरों और गांवों की रक्षा करेंगे। राष्ट्रपति रूहानी के अलावा ईरानी बॉर्डर गार्ड्स के कमांडर कासम रेजाई ने भी माना है कि दोनों देशों के बीच संघर्ष शुरू हुआ तो कुछ गोले और रॉकेट ईरान के इलाके में भी गिरे। खबर मिल रही है कि गोले गिरने की इन घटनाओं के बाद ईरान की सेनाओं को सतर्क कर दिया गया है।
ईरान ही नहीं, लगता है कि रूस भी स्थिति को गंभीर मानकर चल रहा है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस लड़ाई को एक त्रासदी बताया है। रूस ने आर्मीनिया के साथ सैन्य गठबंधन किया है। आर्मीनिया में उसका एक सैन्य अड्डा भी है। वैसे अज़रबैजान के साथ भी रूस का करीबी रिश्ता है। दोनों ही सोवियत संघ का हिस्सा रहे हैं। असल में, जिस नागोर्नो-काराबाख इलाके पर दोनों देशों के बीच विवाद है, वह साढ़े चार हजार वर्ग किलोमीटर में फैला पहाड़ी क्षेत्र है। सोवियत संघ के विघटन के पहले यह अज़रबैजान के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी क्षेत्र रहा है। विकट स्थिति यह है कि धार्मिक, भौगोलिक और राजनीतिक हितों के कारण तुर्की ने अज़रबैजान के लोगों का पक्ष लिया है। वह काकेशियान क्षेत्र में अर्मीनिया का असर कम करना चाहता है। दूसरी ओर, रूस एवं ईरान ने अपने हितों के लिए आर्मेनिया का साथ दिया। ये दोनों देश पूर्व सोवियत संघ के दौर के अपने हित देख रहे हैं और अज़रबैजान के ईरानी सीमा पर बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश करते रहे हैं।

Armenia-Azerbaijan war: Know why the two countries are fighting


विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी आर्मीनियायी लोगों की है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे अज़रबैजान का ही अंग माना गया है। यहां आर्मीनियायी मूल के ईसाई और तुर्की मूल के मुसलमान निवास करते हैं। सोवियत संघ के दौर का हिस्सा होने के कारण रूस से इसके स्वाभाविक जुड़ाव हैं। दोनों ही देश थोड़ी मात्रा में मौजूद बहुमूल्य पेट्रोलियम उत्पाद के बूते वैश्विक अर्थव्यवस्था में दखल के सपने देखते हैं। इस विवाद की जड़ 20वीं शताब्दी में दिखने लगी थी, जब स्टालिन ने नागोर्नो-काराबाख वाले भाग को सोवियत अज़रबैजान के स्वायत्त शासन में दे दिया। तब भी आर्मेनिया के निवासियों ने इसका विरोध किया था। फिर 1988 में इस प्रांत को सोवियत आर्मेनिया को देने की मांग की गयी। वर्ष 1991 में आर्मेनियायी सेना ने नागोनरे-करबाख प्रांत सहित अज़रबैजान के सात अन्य प्रांतों पर कब्जा कर उनकी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। कहीं भी विद्रोही अथवा स्वयंभू सरकारों को मान्यता नहीं दी जाती, पर मौके पर आर्मीनियायी लोगों का बहुसंख्यक होना विद्रोह को बढ़ावा दे रहा है।


सोवियत संघ के विघटन के बाद वाले रूस की ताकत आज भी मायने रखती है। रूसी राष्ट्रपति ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में उम्मीद जतायी कि यह संघर्ष जल्द समाप्त हो जाएगा। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव से फोन पर बात भी की है। रूस के साथ अमेरिका और फ्रांस ने भी संयुक्त रूप से नागोर्नो-काराबाख में संघर्ष की निंदा की है। जिस युद्ध की ईरान ने निंदा करते हुए इलाकाई लड़ाई का डर बताया है, वहां के हालात पर नजर डालना चाहिए। आर्मीनियायी आबादी के प्रभुत्व वाले हिस्सा नागोर्नो-काराबाख के बारे में अज़रबैजान का दावा है कि वह बेहतर स्थिति में है। उसने अधिक गोला बारूद और उच्च कोटि के हथियार रखने का भी दावा किया है। अज़रबैजान के पक्ष में सीरियायी लड़ाकों के भी युद्ध में शामिल होने की खबरें हैं। इसके बावजूद सच्चाई यह है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में आर्मीनियाई सेनाएं गोलाबारी कर रही हैं। अज़रबैजान का टारटर शहर तो वीरान ही हो गया है। यह शहर विवादित क्षेत्र नागोर्नो- काराबाख से सटा हुआ है। करीब एक लाख की आबादी में से अब कुछ ही लोग जमीन के नीचे बने खंदकों में देखे गए हैं। शहर की दुकानों और मकान के शीशे टूटे पड़े हैं और सड़कें सुनसान हो चुकी हैं। उधर, अज़रबैजान के सबसे बड़े शहर गांजा पर भी हमला हुआ है। रेडक्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति ने बड़ी संख्या में आम नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है।


कुल मिलाकर जुलाई में शुरू हुआ संघर्ष अब भयंकर हो रहा है। करीब 72 हजार लोग निर्वासित हो चुके हैं और लगभग तीन सौ से अधिक आम लोगों की मौत हो गई है। हालात पर नियंत्रण नहीं किया जा सका तो जैसी ईरान ने आशंका जतायी है, यह युद्ध क्षेत्रीय संघर्ष का रूप ग्रहण कर सकता है।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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