पायलट की बगावत

पायलट की बगावत

Newspoint24.com/newsdesk/सियाराम पांडेय ‘शांत’

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

चार माह पहले मध्य प्रदेश में जो कुछ हुआ, कुछ उसी तरह का राजनीतिक परिदृश्य राजस्थान में भी नजर आ रहा है। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ बगावत की थी तब भी कांग्रेस ने भाजपा को दोषी ठहराया था और आज जब सचिन पायलट बागी-2 की भूमिका में हैं तब भी कांग्रेस भाजपा को ही दोषी मान रही है। कुछ हद तक यह संभव है कि कांग्रेस में फूट का लाभ भाजपा उठाने की कोशिश कर रही हो लेकिन अपनी पार्टी में फूट न हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? शत्रु का शत्रु दोस्त होता है। कांग्रेस भी तो भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए ऐसा ही कुछ करती रही है। अब बारी भाजपा की है तो विकल क्यों हो रही है?सच तो यही है कि कांग्रेस ने राजस्थान का चुनाव सचिन पायलट और मध्य प्रदेश का चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिश्रम से जीता था। राहुल गांधी ने भी इन चुनावों के दौरान युवा चेहरों को तरजीह देने का वादा किया लेकिन नतीजों के बाद कांग्रेस ने इन युवा चेहरों की जगह मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। इन दोनों ही युवा नेताओं को खुश रखने के लिए उपमुख्यमंत्री पद का झुनझुना थमा दिया गया था। एक ओर तो कांग्रेस यह कहती है कि उसके यहां किसी का भी असम्मान नहीं होता लेकिन एक सच यह भी है कि कांग्रेस में किसी व्यक्ति को इंसान नहीं समझा जाता। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल का बयान देख लें। ‘जब अस्तबल से सारे घोड़े भाग जाएंगे तब ही हम जागेंगे।’ सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के विधायक घोड़े हैं और पूरी कांग्रेस घुड़शाला है?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिशों को बकरा मंडी से जोड़ा था।सचिन पायलट भी अगर कह रहे हैं कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। वे गहलोत एंड कंपनी पर गांधी परिवार की नजर में अगर उन्हें गिराने का षड्यंत्र करने का आरोप लगा रहे हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। सच तो यह है कि कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी के नेताओं में पार्टी में अपनी कद्र कम न हो जाए इसलिए राहुल गांधी की युवा टीम को कमजोर करना आरंभ कर दिया। वे सोनिया गांधी के संपर्क में खुद हैं और प्रियंका वाड्रा को अपने सिपहसालारों के जरिए सलाह-मशविरा दे रहे हैं। वैसे भाजपा नेता ओम माथुर ने अगर कपिल सिब्बल को जवाब दिया है कि जहां हरियाली होगी, वहीं कुलाचें भरने का मजा है, सूखे में खुर टूट जाते हैं तो इसमें गलत क्या है? उन्होंने कहा है कि गहलोत से अपनी पार्टी के युवा संभल नहीं रहे हैं और वह खामख्वाह भाजपा को बदनाम कर रही है। अपना कूड़ा भाजपा पर न फेंके कांग्रेस।वरिष्ठ भाजपा नेत्री उमा भारती की इस बात में दम है कि राजस्थान में जो कुछ भी हो रहा है और मध्य प्रदेश में जो हुआ, उसके लिए राहुल गांधी जिम्मेदार हैं। वह कांग्रेस में युवा नेताओं को आगे नहीं बढ़ने देते। उन्हें लगता है कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे शिक्षित और सक्षम नेता उच्च पद प्राप्त करते हैं, तो वह पीछे रह जाएंगे।

हाल ही में सोनिया गांधी के आवास पर कांग्रेस के लोकसभा सदस्यों की बैठक हुई थी, उसमें यह मांग की गई थी कि राहुल गांधी को फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौंप दी जाए।राजस्थान में पौने दो साल कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा झेल रहे सचिन पायलट पिछले तीन माह से सत्ता संभालने के जुगाड़ में जुटे थे। मार्च के पहले सप्ताह से ही अपने समर्थक विधायकों को एकजुट कर रहे थे। पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा सहित डेढ़ दर्जन विधायकों को पायलट ने मार्च के पहले सप्ताह में ही कांग्रेस से अलग होने के संकेत दे दिए थे। राज्यसभा चुनाव के दौरान अपने समर्थक विधायकों के साथ जयपुर से दौसा होते हुए दिल्ली पहुंचे पायलट की भाजपा के केंद्रीय नेताओं के साथ बातचीत हो चुकी थी लेकिन इसी बीच पायलट के खास माने जाने वाले परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था। हालांकि अब वही खाचरियावास पायलट पर भाजपा के दलदल में फंसने का आरोप लगा रहे हैं। कदाचित वे पाला बदल चुके हैं।राजनीति में कोई किसी का खास नहीं होता। वहां केवल सुविधा का संतुलन ही चला करता है।

मई, 2020 में भी पायलट ने पार्टी आलाकमान से नाराजगी जाहिर की थी कि अब बहुत हो चुका, वे ज्यादा अपमान नहीं सह सकते। कांग्रेस से अलग होकर नया राजनीतिक मोर्चा बनाने की रणनीति में जुटे पायलट को 10 जुलाई को उस समय अलग राजनीतिक कदम उठाने का मौका मिल गया, जब एसटीएफ ने उन्हें विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर नोटिस देकर बयान के लिए बुलाया। इसी मुद्दे को लेकर अपने चार समर्थक मंत्रियों सहित डेढ़ दर्जन विधायकों से चर्चा कर पायलट 11 जुलाई की रात दिल्ली पहुंच गए। उनके समर्थक विधायक भी एनसीआर में एकजुट हो गए। पायलट खेमे की रणनीति रमेश मीणा संभाल रहे हैं।यह पहला मौका नहीं है जब राजस्थान कांग्रेस में इस तरह की बगावत हुई हो। 66 साल पहले 1954 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ कांग्रेस में बगावत हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का हस्तक्षेप भी व्यास की कुर्सी को नहीं बचा पाया था और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद व्यास ने एक तांगे में सामान भरवाया था और मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया था। 1952 में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव हुए। जयनारायण व्यास के नेतृत्व में कांग्रेस ने 160 में से 82 सीट जीत ली लेकिन व्यास खुद जोधपुर बी और जालोर ए सीट से चुनाव हार गए। दो सीट हारने के बाद टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। किशनगढ़ के विधायक चांदमल मेहता ने अपनी सीट खाली कर दी और व्यास वहां से लड़कर उपचुनाव जीत गए। दिल्ली से संदेश आया और पालीवाल को इस्तीफा देना पड़ा। जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बना दिए गए लेकिन दो साल बाद ही पार्टी में बगावत हो गई।

आलाकमान की मनमानी का दंड पार्टी को तो भुगतना ही पड़ता है।66 साल बाद अगर सचिन पायलट भी इतिहास दोहराने को अग्रसर हैं तो इसमें गलत क्या है? राजस्थान में अगर गहलोत खेमे ने ‘वन लीडर-वन पोस्ट’ का कार्ड खेला है तो वह अकारण नहीं है। अशोक गहलोत डरे हुए मुख्यमंत्री हैं। उन्हें सचिन पायलट से डर लगता है। राजस्थान की राजनीतिक उठापटक में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की बगावत के बाद लोगों की नजर भाजपा के रुख पर है लेकिन पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। महाराष्ट्र की गलती वह राजस्थान में हरगिज नहीं दोहराना चाहेगी। वैसे भी सचिन पायलट को लेकर जिस तरह पीएल पुनिया की जुबान फिसली है, राजनीतिक गलियारों में उसके भी अपने कयास लगाए जा रहे हैं।सचिन पायलट ने कह दिया है कि न तो वे कांग्रेस छोड़ रहे हैं और न भाजपा में जा रहे हैं लेकिन कांग्रेस में अब उनकी राह आसान नहीं है। ऐसे में उनके पास दो ही रास्ते हैं-एक यह कि वे अपने समर्थकों संग भाजपा के हो जाएं या कांग्रेस में रहकर जलालत झेलें। कांग्रेस से उनके रिश्ते खराब हो चुके हैं, उन्हें जितना ही वे संभालने की कोशिश करेंगे, गांठ मजबूत होती जाएगी। अगर वे अपने समर्थकों के साथ चुनाव का रुख करते हैं तो भी वे गहलोत के स्तर पर हुए अपने अपमान का बदला ले सकते हैं। राजस्थान में करीब 30 ऐसी सीटें हैं जहां पर सचिन पायलट का अपना प्रभाव है। गुर्जर बहुल सीटों पर तो पायलट अपने उम्मीदवार जिता ही सकते हैं। मुस्लिम और मीणा बहुल सीटों पर भी वह उम्मीदवार जिता सकते हैं। दीपेंद्र सिंह जैसे राजपूत और विश्वेंद्र सिंह जैसे जाट नेता उनके संगठन को मजबूती देने में मील का पत्थर बन सकते हैं। सचिन पायलट को जिस तरह युवा नेताओं का समर्थन मिला है, उसके भी अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं।

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