इन्फैंट्री दिवस पर शहीदों को दिया गया सम्मान

इन्फैंट्री दिवस पर शहीदों को दिया गया सम्मान

इन्फैंट्री दिवस पर शहीदों को दिया गया सम्मान
  • सीडीएस और सेना प्रमुख ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर शहीदों को किया याद
  • अमेरिकी विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की

नई दिल्ली। इन्फैंट्री दिवस पर मंगलवार को सुबह सैन्य बलों के प्रमुख (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। भारत-अमेरिका के बीच तीसरी ‘टू प्लस टू’ वार्ता शुरू होने से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने भी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंचकर भारतीय सशस्त्र बलों के शहीद सैनिकों को सम्मान देने के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की।

इन्फैंट्री डे का इतिहास
​दरअसल देश को आजादी मिलने के तीन महीने गुजर जाने के बाद अक्टूबर तक तीन रियासतों का भारत में विलय नहीं हो पाया था। उनमें से एक रियासत जम्मू-कश्मीर के शासक महाराज हरि सिंह भी थे। मुस्लिमों की बड़ी आबादी होने की वजह से कश्मीर पर जिन्ना की पहले से नजर थी लेकिन हरि सिंह के इनकार के बाद पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा। पाकिस्तान ने कश्मीर को जबरन हड़पने की योजना बनाई। इसी योजना के तहत पाकिस्तान ने कबायली पठानों के सहारे 24 अक्टूबर, 1947 को तड़के धावा बोल दिया। इसी से घबराकर महाराज हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और तत्काल जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।

इसके बाद भारतीय सेना ने सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन से पैदल सेना के एक दस्ते को हवाई जहाज से दिल्ली से श्रीनगर भेजा। इन पैदल सैनिकों को पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कश्मीर में घुसपैठ करने वाले कबायलियों को रोकना और कश्मीर को उनसे मुक्त कराना था। कश्मीर को बचाने के लिए दिल्ली से भेजी गई सिख रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय 27 अक्टूबर, 1947 को अपने सैनिकों के साथ कबायलियों से युद्ध में उतरे और उसी शाम को उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल राय को मरणोपरांत भारतीय सेना का पहला ‘महाबीर चक्र’ प्रदान किया गया।​ ​देश को आजादी मिलने के बाद आक्रमणकारियों के खिलाफ भारतीय सेना का यह पहला सैन्य अभियान था। कश्मीर में घुसपैठ करने के लिए करीब 5000 कबायलियों ने एबटाबाद से कश्मीर घाटी पर हमला किया था। भारतीय पैदल सैनिकों ने आखिरकार कश्मीर को कबायलियों के चंगुल से 27 अक्टूबर, 1947 को मुक्त करा लिया।

​देश को आजादी मिलने के बाद भारतीय सेना ने अपने पहले सैन्य अभियान में आज ही के दिन कश्मीर को कबायलियों के चंगुल से मुक्त कराया था। पैदल सेना या इन्फैंट्री भारतीय सशस्त्र बलों का एक अहम अंग है। देश की सुरक्षा में पैदल सेना का अहम योगदान है। इसके योगदानों और गौरवशाली इतिहास को 27 अक्टूबर का दिन समर्पित किया गया है। ​​चूंकि इस पूरे सैन्य अभियान में सिर्फ पैदल सेना का ही योगदान था, इ​​सलिए इस दिन को भारतीय थल सेना के पैदल सैनिकों की बहादुरी और साहस के दिन के तौर पर मनाने का फैसला लिया गया।​ ​पैदल सेना भारतीय थल सेना के लिए रीढ़ की हड्डी जैसी है। इसको ‘क्वीन ऑफ द बैटल’ यानी ‘युद्ध की रानी’ भी कहा जाता है। किसी भी युद्ध में पैदल सैनिकों की बड़ी भूमिका होती है। शारीरिक चुस्ती-फुर्ती, अनुशासन, संयम और कर्मठता पैदल सैनिकों के बुनियादी गुण हैं।

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