करूणा, सहानुभूति, समावेश और लोकतंत्र का आधार है रामायण: वेंकैया

करूणा, सहानुभूति, समावेश और लोकतंत्र का आधार है रामायण: वेंकैया

Newspoint24.com/newsdesk/

नयी दिल्ली। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने रामायण को करुणा, सहानुभूति, समावेश, शांतिपूर्ण सहस्तित्व तथा लोकतंत्र का आधार करार देते हुए कहा है कि यही हमारे राष्ट्रीय प्रयासों के लिए अनुकरणीय मानदंड बन सकता हैं और इइसे हमें अपने राजनैतिक, न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करना चाहिए।

श्री नायडू ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर रविवार को लिखे एक लेख में कहा कि इस सुअवसर पर, जब पांच अगस्त 2020, को श्री राम के प्राचीन मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारंभ करेंगे, और जन आकांक्षाओं के अनुरूप एक वैभवशाली मंदिर का निर्माण करेंगे, हम भारत के इस महा ग्रंथ रामायण के सार्वकालिक, सार्वभौमिक संदेश को समझें, उसका प्रसार करें, उन आधारभूत मूल्यों और मर्यादाओं से अपने जीवन को समृद्ध करें।

” भारत के विश्व दर्शन की व्यापकता को समझने के लिए आइए भारत के इस आदि महाकाव्य रामायण का अध्ययन करें, हमारे संस्कारों, जीवन मूल्यों, हमारी संस्कृति को पहचानने के लिए रामायण को पढ़ें। अपनी भाषाई और वैचारिक समृद्धि को समझने के लिए रामायण का अनुशीलन करें।” उन्होंने कहा कि करुणा, सहानुभूति, समावेश, शांतिपूर्ण सहस्तित्व पर आधारित जन केंद्रित लोकतांत्रिक राज्य जिसमें लोगों को बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास किया जाता था, यही राज्य राष्ट्रीय प्रयासों के लिए अनुकरणीय मानदंड और प्रेरणा बन सकता है कि हम समाज में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करें। इससे मार्गदर्शन हो सकता है और राजनैतिक, न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र को मजबूत किया जा सकता है।
श्री नायडू ने कहा, “ आज से कुछ दिन बाद, हम सभी अयोध्या में हो रहे एक ऐतिहासिक अवसर के साक्षी होंगे। एक ऐसा अवसर जो हम सबको अपनी सांस्कृतिक धरोहर, हमारे आदर्शों से जोड़ेगा।एक ऐसा आयोजन जो हमें, लगभग दो हजार साल पहले लिखी, हमारी संस्कृति की कालजई कृति रामायण का स्मरण दिलाएगा। रामायण, हमारी साझा चेतना का अभिन्न हिस्सा है। एक आयोजन जो हम सबको भक्ति से अभिभूत कर देगा। हम अपने आदर्श पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर का निर्माण करने जा रहे हैं। भक्तों के लिए श्री राम भगवान के रूप में पूजनीय हैं, वे मर्यादा पुरुष हैं, वे मर्यादाएं जो एक संतुलित और न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का आधार है।”


उन्होंने कहा , ” सचमुच में यह स्वतः स्फूर्त उत्सव सा अवसर है जब हम अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्स्थापित करेंगे, उन मूल्यों और मर्यादाओं को स्थापित करेंगे जो हमारा मार्गदर्शन करती रही हैं।” उन्होंने कहा कि यह अवसर समाज के आध्यात्मिक अभ्युदय को प्रशस्त कर सकता है बशर्ते हम रामायण में निहित जीवन संदेश को समझें, उसे सही परिपेक्ष्य में देखें, एक ऐसी गाथा के रूप में देखें जिसमें धर्म और सदाचार के भारतीय दर्शन को पिरोया गया। रामायण का जीवन दर्शन विस्तृत और विहंगम है, इतना विस्तृत कि इसने दक्षिण पूर्वी एशिया की अनेक संस्कृतियों, समुदायों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वेद और संस्कृत के विद्वान आर्थर एंटनी मैक्डोनल्ड के अनुसार भारतीय ग्रंथों में वर्णित राम मूलतः पंथ निरपेक्ष हैं, विगत ढाई सहस्त्राब्दी से लोगों के जीवन, उनके आचार- विचार पर राम का गहरा प्रभाव रहा है। रामायण ने भारत ही नहीं बल्कि जावा, बाली, मलाया, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया जैसे अनेक दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में अनेक साहित्यकारों, कथाकारों, कवियों, लोक कलाकारों, उनके संगीत, नाटकों, नृत्य नाटिकाओं को भी प्रभावित किया है। थाईलैंड में तो राजा का नाम ही राम के नाम पर होता है और 14 वीं सदी में स्थापित इस राज्य की राजधानी का नाम ही ‘अयुत्थाया’ रख दिया गया। रामायण के अनेक संस्करण हैं जैसे थाईलैंड में रामाकिन, कंबोडिया में रामकेर, इंडोनेशिया में, जावा की काकाविन रामायण तथा बाली की बाली रामकवचा, लाओ भाषा में फ्रा लक फ्रा लाम, मलेशिया की हिकायत सेरी रामा, म्यांमार की यमा जैदाॅ, फिलीपींस की महरादिया लावना, नेपाल की भानुभक्त रामायण, ये रामायण के कुछ प्रमुख संस्करण हैं। चीनी जातक कथाओं में राम कथा लियूडू जी जिंग तथा इस महाकाव्य के जापानी संस्करण होबुत्सुशु तथा संबो एकोतोबा, ये रामायण की सार्वभौमिक लोकप्रियता और मान्यता के परिचायक हैं।

श्री नायडू ने कहा कि रूसी भाषा में अलेक्जेंडर बरानिकोव ने इसका अनुवाद किया तथा रूसी थियेटर कलाकार गेनाडी पेचनिकोव द्वारा इसका मंचन बहुत लोकप्रिय हुआ। अंकोरवाट की दीवारों पर रामायण के दृश्य उकेरे गए हैं, इंडोनेशिया के प्रमबनान मंदिर में रामायण पर आधारित प्रसिद्ध नृत्य नाटिका, धर्म और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर रामायण के सांस्कृतिक प्रभाव को दिखाते हैं।
उन्होंने कहा, ” यह जानना भी रोचक होगा कि विभिन्न मतों जैसे बौद्ध, जैन, सिक्ख मतों में भी रामायण को आत्मसात किया गया है।”
उन्होंने कहा कि ये स्वाभाविक ही है कि इस महागाथा को विभिन्न भाषाओं में अनेक प्रकार से कहा गया, सुनाया गया, उसके अनेक संस्करण प्रचिलित हुए। इस महागाथा का मर्म, इसे सुनाने की शैली का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि इसने हर काल में, हर क्षेत्र के, हर वर्ग, हर आयु वर्ग के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर बांध लिया। महर्षि नारद की वाणी कितनी सत्य साबित हो रही है जब उन्होंने कहा कि राम कथा तब तक सुनी और सुनाई जाती रहेगी जब तक पर्वत स्थिर खड़े हैं और नदियों में पानी है।

श्री नायडू ने कहा कि इस महागाथा का आकर्षण ही यह है कि इसमें राम, सीता और लक्ष्मण की उत्तर में अयोध्या से दक्षिण में लंका तक की वनयात्रा के दौरान, मार्ग की विभिन्न घटनाओं के इर्द गिर्द जीवन के सनातन मूल्यों का सुंदर और मार्मिक वर्णन किया गया है, हर प्रसंग में एक मर्मस्पर्शी संदेश है जो सहज ही श्रोता की बांध लेता है। उन्होंने कहा कि ये कथा प्रारंभ ही होती है जब महर्षि वाल्मीकि महर्षि नारद से पूछते हैं कि ऐसा कोई भी है जिसका चरित्र धवल निष्कलंक है, जो विद्वान है, दक्ष और निपुण है, जो सौम्य और सुंदर है और जो सदैव जीवित प्राणी मात्र के कल्याण के विषय में विचार करता हो। महर्षि नारद उत्तर देते हैं यद्यपि यह कठिन है कि ये सारे सद्गुण एक ही व्यक्ति में हों, फिर भी सिर्फ एक ही व्यक्ति ऐसा है जिसके पास ये सभी गुण हैं, और वह श्री राम हैं। उनके सभी सद्गुणों में सबसे श्रेष्ठ है कि वे प्राणी मात्र के संरक्षण के लिए समर्पित हैं तथा धर्म की स्थापना और रक्षा के लिए संकल्पबद्ध हैं। बल्कि रामायण महाकाव्य में एक स्थान पर उनके लिए कहा गया है ‘रामो विग्रह्वान धर्म:’ अर्थात राम धर्म, सदाचार, सत्य और न्याय की साक्षात मूर्ति हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राम भारतीय संस्कारों की साक्षात मूर्ति हैं। वे आदर्श शासक हैं, मर्यादा पुरुष हैं। राम उन विलक्षण गुणों की मूर्ति हैं जिनके लिए कोई भी व्यक्ति प्रयास करता है, जिनकी आकांक्षा करता है। रामायण इन विलक्षण गुणों की ही महान कथा है। जैसे जैसे राम के भारत भ्रमण के साथ साथ कथा आगे बढ़ती है उनके जीवन चरित्र, उनकी मर्यादा और मान्यताओं के आयाम प्रकट होते जाते हैं जिसमें सत्य के प्रति निष्ठा, शांति, सद्भाव, समावेशी समन्वय और सहयोग है, करुणामय न्याय है, भक्ति है, त्याग है, सहानुभूति है। यही मूल्य भारतीय जीवन दर्शन का आधार है। ये मूल्य देश और काल की सीमा से परे, कालातीत और सार्वभौमिक हैं। स्वाभाविक है कि रामायण आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
उन्होंने कहा कि राम राज्य वह आदर्श है जिसके आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक आदर्श जन कल्याणकारी राज्य की कल्पना की थी। 1929 में यंग इंडिया में उन्होंने लिखा है, ” पता नहीं मेरी कल्पना के राम ने कभी धरती पर जन्म लिया कि नहीं लेकिन रामायण का आदर्श रामराज्य निःसंदेह सच्चा लोकतंत्र था जिसमें छोटे से छोटे नागरिक को भी बिना किसी खर्च या लंबी प्रक्रिया के, त्वरित न्याय सुलभ और सुनिश्चित था। रामायण के कवि के अनुसार कुत्ते तक को न्याय सुलभ था।”

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