कोरोना के दौर में इंसानियत की जरूरत,मानवीय संवेदना कहां खो गयी

कोरोना के दौर में इंसानियत की जरूरत,मानवीय संवेदना कहां खो गयी

Newspoint24.com/newsdesk/डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

कोरोना के दौर में इंसानियत की जरूरत,मानवीय संवेदना कहां खो गयी

पिछले दिनों मीडिया में यह समाचार प्रमुखता से आया कि संक्रमित पाए गए कई व्यक्तियों को सेनेटाइज करवाने, साफ-सफाई करवाने, मास्क, क्लिनिकल जांच और अस्पतालों में इलाज के पैकेज तक की जानकारी मोबाइल से दी जा रही है। इनसे जुड़े प्रतिष्ठान या यों कहे कि इनकी मार्केटिंग करने वाले, संक्रमित लोगों से मोबाइल से संपर्क कर अपने पैकेज की जानकारी दे रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि संक्रमित व्यक्ति का नाम और नंबर इनके पास पहुंच कैसे रहा है? तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि मानवीय संवेदना कहां खो गयी?आज कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति की मनोदशा समझने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा लाॅकडाउन खोलने और घर पर ही क्वारंटाइन की अनुमति के बावजूद जिस व्यक्ति या परिवार पर कोरोना का संभावित साया दिखाई देता है उस व्यक्ति या परिवार की क्या हालत होती है, यह सोचने-समझने की बात है।

कोरोना से व्यक्ति और परिवार इस तरह आक्रांत होता जा रहा है कि दर से बदतर स्थिति हो जाती है।जिस तरह के समाचार कोविड सेंटरों के बाहर निकलकर आते हैं उससे व्यक्ति वैसे ही भयाक्रांत हो जाता है। पिछले दिनों डेडिकेटेड कोविड सेंटरों पर संभावित संक्रमितों में से देश के अलग- अलग हिस्सों में कुछ लोगों द्वारा आत्महत्या करने के समाचार हमारे सामने हैं। ऐसे में आज सबसे बड़ी आवश्यकता लोगों में सकारात्मकता और विश्वास जागृत करने की है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि विल पाॅवर से व्यक्ति गंभीर से गंभीर परिस्थिति से संघर्ष कर विजय प्राप्त कर सकता है। ऐसे में जिस तरह के समाचार डिमोरलाइज्ड करने के आ रहे हैं उससे भय और हताशा का माहौल ही सामने आ रहा है।कोरोना के चलते देश में एक लाख पांच हजार से अधिक लोगों की मौत और 68 लाख से अधिक संक्रमितों के बीच बाजारवादी संस्कृति ने सारी संवेदनाओं को तार-तार कर दिया है।

कोरोना के दौर में इंसानियत की जरूरत,मानवीय संवेदना कहां खो गयी

देश के कई कोनों से इस तरह के समाचार या सोशल मीडिया पर इस तरह के संदेश आम होते जा रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए कंपनियां या अस्पताल, जांच लेबोरेटरीज द्वारा संभावित संक्रमितों को फोन करके अपने लुभावने पैकेजों की जानकारी दी जा रही है। कोरोना की दहशत में लोगों के पास इस तरह के फोन आते हैं तो उनमें क्या बीतती होगी शायद इन लोगों को इसका अहसास नहीं। दरअसल मार्केटिंग में जुटे लोग मौत को भी भुनाने में कसर नहीं छोड़ते हैं। कोरोना संक्रमितों के निजी चिकित्सा केन्द्रोें के बिल यदाकदा समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रहे हैं। जांच, दवा, चेकअप, आईसीयू, वेंटिलेटर आदि के नाम पर लाखों के बिल आम होते जा रहे हैं। गाहे बेगाहे सरकार द्वारा जांच व अन्य सुविधाओं और इलाज खर्च की राशि तय कर जारी की जाती है पर सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर कितना इलाज हो रहा है यह जांच का विषय है।

बीमारी की गंभीरता के बीच जहां संक्रमित व्यक्ति और परिवार अपनों को बेहतर ईलाज के लिए निजी अस्पतालों की और रुख करते हैं तो जब बिल मिलता है तो व्यक्ति को हिलाकर रख देता है।दरअसल यह समय सहयोग और सदभाव का है। हालात यह है कि किसी से मिल नहीं सकते, दो शब्द सहानुभूति के भी मोबाइल के माध्यम से ही व्यक्त कर सकते हैं। संवाद के अभाव में सामूहिक अर्थात् पूरे परिवार के साथ आत्महत्याओं के समाचार आ रहे हैं। ऐसे में संवाद के उपलब्ध संसाधनों का सकारात्मक सोच के साथ उपयोग किया जाता है तो यह अच्छी पहल हो सकती है। स्वयं जाकर मिलना-जुलना बड़ी परेशानी का सबब है।

यह भी सही है कि कोरोना महामारी ने सारे सामाजिक मेल-मिलाप को खत्म कर दिया है। मास्क, सोशल डिस्टेंस सेनेटाइज ही सबकुछ होकर रह गया है। सुरक्षा में ही बचाव एकमात्र विकल्प है।कोरोना महामारी के दौर में सारी दुनिया भयाक्रांत है। नित नए संक्रमित हो रहे हैं, काल के ग्रास में समा रहे हैं। ऐसे में इस बुरे वक्त से निपटने के लिए संवेदनशीलता के साथ आगे आना होगा।

व्यक्ति की मनोदशा को समझना होगा। कालाबाजारी और मुनाफाखोरी जैसी चीजों से दूर होना होगा क्योंकि यह संकट किसी एक का नहीं अपितु सारी दुनिका का संकट है। ऐसे में जांच सुविधा हो या माॅस्क या सेनेटाइजर या अस्पताल की अन्य सुविधाएं, इन सबको उपलब्ध कराने के लिए मार्केटिंग नहीं अपितु सेवा की भावना से आगे आना होगा। एक सीमा तक ही लाभ कमाने के बारे में सोचना होगा। अभी इस जानलेवा और अंदर तक तोड़ देने वाली महामारी मेें राहत पहुंचाना ही बड़ा ध्येय होना चाहिए। यही मानवता की दरकार है।

Blog single photo
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Share this story