नारी सम्मान के बिना कैसे प्रसन्न होंगी देवी मां

नारी सम्मान के बिना कैसे प्रसन्न होंगी देवी मां
नारी सम्मान के बिना कैसे प्रसन्न होंगी देवी मां

योगेश कुमार गोयल

साल में दो बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जो नारी शक्ति के आदर-सम्मान का उत्सव है। यह नारी को उसके स्वाभिमान और शक्ति का स्मरण दिलाता है और साथ ही समाज को नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है। नारी को भारतीय संस्कृति में विशेष सम्मान प्राप्त है। सनातन धर्म में मां दुर्गा को जगत का पालन करने वाली, विश्व कल्याण की प्रणेता और दुष्टों का संहार करने वाली अधिष्ठात्री देवी माना गया है। एक ओर जहां नवरात्रि पर्व के दौरान देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग नारी रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, वहीं विद्या एवं बुद्धि की देवी भी नारी स्वरूपा देवी सरस्वती हैं। इसी प्रकार धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी भी नारी स्वरूपा हैं।

सभी पौराणिक ग्रंथों में नारी को देवी शक्ति के रूप में पूजनीय माना गया है और नारी के सामाजिक महत्व को स्वीकारते हुए कहा गया है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहीं देवताओं का वास होता है। गुरू नानकदेव जी ने भी नारी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि नारी, जोे राजाओं की भी जननी है, उसका सम्मान होना चाहिए। इसी प्रकार प्रसिद्ध विचारक हेरिएट बीचर स्टोव ने कहा था कि महिलाएं समाज की वास्तविक शिल्पकार होती हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों में हम मातृ शक्ति के नौ रूपों का पूजन करते हैं, कन्याओं को भोजन पर आमंत्रित कर उनकी पूजा करते हैं, चरण धोकर उनका स्वागत करते हैं और तिलक के पश्चात् दक्षिणा तथा उपहार देकर विदा करने की परम्परा का निर्वहन करते हैं लेकिन साल के बाकी दिन यही नारी शक्ति सम्मान पाने के लिए विभिन्न मोर्चों पर संघर्ष करती दिखती हैं। घर हो या बाहर, उसे हर कहीं किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार होना पड़ता है। कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति हो या समाज में महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ते अपराध, हर कहीं स्थिति सोेचनीय दिखाई पड़ती है।

किसी भी देश का भविष्य नारी पर ही टिका होता है क्योंकि एक मां जिस प्रकार अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं, उन्हें संस्कारवान बनाती है और फिर वही बच्चे देश के कर्णधार बनते हैं, ऐसे में समझा जा सकता है कि एक नारी की भूमिका राष्ट्र निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण है। आज भले ही नारी समानता की बातें हो रही हैं लेकिन समानता के इस अधिकार को हासिल करने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। फिर भी संतोषजनक स्थिति यह है कि धीरेे-धीरे ही सही, लगभग हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है। यदि कहा जाए कि महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से पीछे नहीं हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। घर-परिवार से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारी आज महिलाएं बखूबी निभा रही हैं। साक्षरता के मामले में भले ही महिलाओं की स्थिति अभी पुरूषों के मुकाबले कम है लेकिन दूसरी ओर अगर हम देखें तो विभिन्न परीक्षाओं में लड़कियां ही आज लड़कों से आगे निकलती दिखाई देती हैं। चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, उच्च प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी क्षेत्रों में महिलाएं आज नेतृत्व प्रदान कर रही हैं। व्यापार, अंतरिक्ष, खेल, राजनीति इत्यादि क्षेत्रों में भी वे नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सुरों की साम्राज्ञी लता मंगेशकर, किरण बेदी, पीटी उषा, कल्पना चावला, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन इत्यादि अनेक भारतीय महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों से समय-समय पर देशवासियों को गौरवान्वित किया है।

स्वतंत्रता सेनानी और कवियत्री सरोजिनी नायडू, जिन्हें ‘भारत कोकिला’ के नाम से भी जाना जाता है, देश की पहली महिला गवर्नर बनीं। उसी प्रकार स्वतंत्रता सेनानी रही सुचेता कृपलानी देश के किसी राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थी। उन्हें उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभालने का गौरव हासिल है। पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की छोटी बहन विजयलक्ष्मी पंडित भारत की ऐसी पहली महिला थी, जो यूएन जनरल असेंबली की प्रेसीडेंट रही। वह देश की आजादी के बाद 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रही और 1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसीडेंट रही। दीपक संधू भारत की पहली महिला मुख्य सूचना आयुक्त रह चुकी हैं। कर्नाटक की राज्यपाल रह चुकी रमा देवी भारत की प्रथम महिला चुनाव आयुक्त बनी थी।

पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की सुपुत्री मीरा कुमार बिजनौर से 1985 में सांसद चुने जाने के बाद 2009 में लोकसभा की पहली महिला स्पीकर चुनी गई। प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त है। जून 2016 में तीन जांबाज महिलाओं, बिहार के बेगूसराय की भावना कंठ, मध्य प्रदेश के रीवा की अवनी चतुर्वेदी तथा वडोदरा की मोहना सिंह ने पहली बार वायुसेना में फाइटर प्लेन पायलट का दायित्व संभालकर स्पष्ट संदेश दिया था कि महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता जो भी हो पर महिलाएं आज देश के नभ को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं।

बहरहाल, आज भारतीय महिलाएं हर मोर्चे पर सफलता की जो कहानियां लिख रही हैं, उसे देखते हुए उन्हें हर वो मान-सम्मान मिलना ही चाहिए, जिसकी वो हकदार हैं। समय की बदलती धारा के साथ महिलाएं अपने प्रयासों और प्रयत्नों में कहीं पीछे नहीं हैं, बस आवश्यकता है उन्हें सही अवसर प्रदान करने की। नवरात्रि पर्व को धूमधाम से मनाने और इस अवसर पर कन्या पूजन करने का औचित्य भी तभी है, जब हम नारी के गुणों का इसी प्रकार सम्मान करें और आगे बढ़ने के हरसंभव अवसर उन्हें प्रदान करें। इस नवरात्रि पर संकल्प लें कि नारी के प्रति सम्मान रखने के लिए हम अपने घर-परिवार से इसकी शुरूआत करेंगे।

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योगेश कुमार गोयल

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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