पितृ विसर्जन पर श्राद्ध पिंडदान के लिए गंगा तट पर उमड़ी भीड़,तर्पण कर पितरों की विदाई

पितृ विसर्जन पर श्राद्ध पिंडदान के लिए गंगा तट पर उमड़ी भीड़,तर्पण कर पितरों की विदाई

Newspoint24.com/newsdesk/

वाराणसी। पितृ विसर्जन (आश्विन अमावस्या) पर गुरुवार को लोगों ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का श्राद्ध पिंडदान, तर्पण कर उन्हें विदाई दी। 
अपने पुरखों का पिंडदान करने के लिए लोग भोर से ही गंगा तट सिंधिया घाट, दशाश्वमेध घाट, मीरघाट, अस्सी घाट, शिवाला घाट, राजाघाट सहित विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पहुंचने लगे। मुहूर्त के अनुसार लोगों ने मुंडन करा कर गंगा और कुंडों में डुबकी लगाकर श्राद्धकर्म और पिंडदान किया। यह क्रम पूरे दिन चलता रहा। 

पितृ अमावस्या पर अपने ज्ञात अज्ञात पितरों का पिंडदान और श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ गंगाघाटों पर लगी रही। पिंडदान के दौरान लोगों ने अपने कुल, गोत्र का उल्लेख कर हाथ में गंगा जल लेकर संकल्प लिया और पूर्वाभिमुख होकर कुश, चावल, जौ, तुलसी के पत्ते और सफेद पुष्प को श्राद्धकर्म में शामिल किया। इसके बाद तिल मिश्रित जल की तीन अंजुली जल तर्पण में अर्पित किया। इस दौरान तर्पण आदि में हुई त्रुटि, किसी पितर को तिलांजलि देने में हुई चूक के लिए क्षमा याचना भी की। अपने पितरों से सुखद, सफल जीवन के लिए आशीर्वाद भी मांगा। पिंडदान के बाद गाय, कुत्ता, कौवा को पितरों के प्रिय व्यंजन का भोग लगा कर खिलाया। अपने पूर्वजों को पिंडदान तर्पण करने के बाद लोग घर पहुंचे। घर में बने विविध प्रकार के बने व्यंजनों को निकाल पितरों को चढ़ाकर ब्राम्हणों को खिलाने के बाद अपने भी प्रसाद ग्रहण किया। देर शाम लोग अपने घरों के बाहर पूड़ी, सब्जी, पानी, दीये और डंडी रखकर पितरों को विदा देंगे। सनातन धर्म में माना जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पंद्रह दिनों तक अपने घरों के आसपास मौजूद रहते है। अपनों से सेवा भाव के साथ श्राद्धकर्म कराने के बाद अमावस्या पर अपने लोक को वापस लौट जाते है। माना जाता है कि पितरों के श्राद्धकर्म न करने से सात जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है। 

राजेन्द्र प्रसाद घाट पर सामूहिक अमावस्या पर प्रति​वर्ष की भांति आध्यात्मिक न्याय समिति ने राजेंद्र प्रसाद घाट पर नि:शुल्क सामूहिक श्राद्ध कराया। समिति के संस्थापक डॉ.राजकुमार मिश्र ने बताया कि भारत में पारिवारिक एवं सामाजिक ताना-बाना बहुत दृढ बनाया गया है। यहां पर लोग न केवल जीवन काल में अपितु मृत्यु के पश्चात भी संबंधों का निर्वहन करते हैं।

प्राचीन समय में आवश्यकता पड़ने पर लोग पितरों को बुलाया करते थे और उनसे परामर्श लेते थे। आजकल इस विद्या का साधना ना होने से आधुनिक लोग पितरों के अस्तित्व को नकारने लगे हैं। फिर भी जो लोग अपने पितरों को पिंड दान आदि के द्वारा प्रसन्न रखते हैं। वह भविष्य में किसी भी परिस्थितियों में प्रसन्न रहते हैं,उन पर कोई आपत्ति नहीं आती। जिस देश में अपने पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक पिंडदान आदि कर्म होता है। उस देश में कभी आपसी कलह एवं वैमनस्य नहीं होता। 

इस दौरान आर्य महिला इंटर कॉलेज के प्रबंधक व समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण पांडेय ने कहा कि पिंडदान बहुत ही पवित्र कार्य है।  इसे विशेष पर्व पर अवश्य करना चाहिए। तर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं। कार्यक्रम में कैलाश नाथ उपाध्याय, गौरव पांण्डेय, श्री कृष्ण मोहन त्रिपाठी, संजय तिवारी, श्रीकांत तिवारी, अर्पिता मिश्रा, विजय नारायण मिश्र, निमिष मिश्र आदि की उपस्थिति रही

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