कश्मीर में संघर्ष धर्म परिवर्तित और बाहरी मुसलमानों के बीच: डॉ अग्निहोत्री

कश्मीर में संघर्ष धर्म परिवर्तित और बाहरी मुसलमानों के बीच: डॉ अग्निहोत्री

Newspoint24.com/newsdesk/

जम्मू। कश्मीर में तनाव अथवा संघर्ष की समस्या केवल धर्म परिवर्तिन कर चुके और बाहरी देशों से आए मुसलमानों के बीच ही है। जम्मू कश्मीर में केवल पांच प्रतिशत मुसलमान ही बाहरी देशों से आकर बसे थे। इनमें मुगल, अफगान और पठान आदि शामिल हैं। आज तक इन पांच प्रतिशत मुसलमानों ने ही धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने लोगों पर जम्मू कश्मीर में राज किया है। 

73वें विलय दिवस पर जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के जम्मू चैप्टर द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के उप कुपलति डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने मुख्य वक्ता के तौर पर अपने संबोधन में यह विचार व्यक्त किए। अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में रविवार को पहला विलय दिवस आधिकारिक तौर पर मनाया गया। इस दौरान सरकारी अवकाश भी घोषित किया गया था।

डॉ. अग्निहोत्री ने कहा कि महाराजा हरि सिंह द्वारा जम्मू कश्मीर से देश के विलय की देरी का कारण भी लार्ड माउंटवेटन परिवार और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के बीच दोस्ती थी। महाराजा हरि सिंह पर दबाव बनाया गया था, लेकिन वह दबाव में नहीं आए। माउंटवेटन के कहने पर ही नेहरु इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे। डा अग्निहोत्री ने फ्रीडम एट मिड नाइट पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि 1947 में ब्रिटिश गर्वनर जनरल लार्ड माउंटवेटन ने स्वीकार किया है कि वह नहीं चाहते थे कि जम्मू कश्मीर का विलय भारत के साथ हो। इसकी वजह के शेष विश्व से भूमि के जरिए अथवा लैंड रुट से होने वाले संपर्क को खत्म करना था। उन्होंने कहा कि भारत-पाकिस्तान का विभाजन भी असल में लैंड रुट को खत्म करने के लिए किया गया था।

डॉ. अग्निहोत्री ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा भारत में शब्दों के जरिए भी इतिहास को बदलने की कोशिश की थी और इसमें वह कामयाब भी रहे। उन्होंने उदाहरण दिया कि अंग्रेजों ने यह प्रचार किया था कि  भारत पर हमले मुसलमानों ने किए थे, जबकि ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में आने से पहले यह कहा जाता था कि यह हमलावर मुगल, तुर्क, अफगानी, मंगोल और अरब थे। डा. अग्निहोत्री ने कहा कि जब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को मुगलों और अफगानों से आजाद करवाकर कश्मीरियों को राहत दिलवाई थी, तो बाद में अंग्रेजों ने इसे पहले कश्मीरियों  को सिखों का और बाद में डोगरा शासकों का मुलाम बता दिया। 

उन्होंने कहा कि जिस गिलगित का सामरिक दृष्टि से महत्व महाराजा रणजीत सिंह और महाराजा गुलाब सिंह को मालूम था, नेहरु ने माउंटवेटन के परिवार से दोस्ती की वजह से इसे अनदेखा कर दिया। क्योंकि ब्रिटिश हकुमत नहीं चाहती थी कि भारत गिलगित के जरिए रुस तक पहुंच सके। अग्निहोत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर के विलय दिवस को हर वर्ष बडे पैमाने के तौर पर उत्सव के तौर पर मनाया जाना चाहिए। इसके लिए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र ने एक बेहतर कार्यक्रम का आयोजन किया है। बाद में जम्मू कश्मीर अध्यन केंद्र के नुमाइंदों के साथ डा अग्निहोत्री ने महाराजा हरि सिंह की प्रतिमा पर तवी पुल के निकट जाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस मौके पर डा गौतम मैंगी, जम्मू विवि के उप कुलपति प्रो मनोज धर, जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के जम्मू कश्मीर चैप्टर के सचिव एडवोकेट हर्षवर्धन गुप्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अरुण जैन, प्रांत प्रचार रुपेश कुमार, सह प्रांत प्रचारक मुकेश कुमार, गौरखा, सिख, मुस्लिम समाज के विभिन्न नुमाइंदों के अलावा शहर के प्रमुख नागरिक भी मौजूद थे।  

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