चीन ने ​तिब्बत सीमा की ​’नो मैन्स लैंड​’ पर ​बनाई सड़क, खुफिया तंत्र हुआ फेल, चरवाहों के खुलासे पर पता चला

चीन ने ​तिब्बत सीमा की ​’नो मैन्स लैंड​’ पर ​बनाई सड़क, खुफिया तंत्र हुआ फेल, चरवाहों के खुलासे पर पता चला

Newspoint24.com/newsdesk/सुनीत निगम/

-​ चीन ने ​भारत सीमा की ओर 20 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण ​किया
​- पहले ड्रोन भेजकर रेकी और फिर रात ​में पहाड़ काटकर बनाता है सड़क

किन्नौर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) साजू राम राणा ने सीमावर्ती गांवों में ड्रोन आने की पुष्टि की​​।​​ सड़क निर्माण को लेकर उन्होंने कहा कि इतनी लंबी सड़क कम समय में नहीं बन सकती​​।​​​ उन्होंने यह भी माना कि ग्रामीणों ने इस संबंध में जानकारी दी थी​ लेकिन ​भारतीय सीमा क्षेत्र में ऐसा कुछ नहीं हो रहा​​ है​।​​ प्रदेश पुलिस के मुखिया पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) संजय कुंडू ने कहा कि चीन से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा-व्यवस्था मजबूत बना​​ने के लिए शिमला, कुल्लू और नूरपुर में कमांडो यूनिट गठित करने के लिए प्रदेश सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा गया है। कुंडू ने बताया कि पूर्वी लद्दाख की सीमा पर 15 जून को गलवान घाटी की घटना के बाद हिमाचल पुलिस ने दो जिलों किन्नौर और लाहौल स्पिति के साथ लगती चीन की 240 किलोमीटर के सीमावर्ती इलाकों का पांच आईपीएस अफसरों से निरीक्षण करवाया है, ​जिसकी रिपोर्ट राज्यपाल, राज्य सरकार सहित रक्षा मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय को भेजी गई है।


नई दिल्ली ​​। ​​पूर्वी लद्दाख की ​सीमा पर उपजे तनाव के बाद भी चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है​​।​​ अब उसने हिमाचल​ प्रदेश के किन्नौर जिले की सीमा से सटे अपने कब्जे वाले तिब्बत में 20 किमी​.​ तक सड़क निर्माण ​कर रहा है,​​ ​जिसमें ​2 किमी. ‘नो मैन्स लैंड’​ भी है​।​ सीमा के आखिरी गांव ​​कुन्नू चारंग ​के ​ग्रामीणों ​ने सबसे पहले इसका खुलासा किया और प्रशासन को सूचना दी​। ​​इसके बाद कराई गई खुफिया ​जांच की ​रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है। ​चीन रात के अंधेरे में तेज गति से खेमकुल्ला पास की ओर सड़क का निर्माण कर रहा है। चीन की तरफ से पहले रेकी करने के लिए ड्रोन ​आते हैं और फिर रात होते ही पहाड़ काटने के लिए किये जाने वाले विस्फोटों की आवाजें आती हैं​​।​​ ​इस घटना के बाद ​​सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई ​हैं।​ ​​इंटेलिजेन्स के अधिकारी भी सीमाओं के दौरे पर निकले ​हैं​।

हिमाचल​ प्रदेश के दो जिलों किन्नौर और लाहौल स्पिति के साथ ​240 किलोमीटर ​लम्बी ​चीन की ​सीमा है​।​​ ​​किन्नौर में तिब्बत से 120 किमी​.​ का बॉर्डर एरिया ​है​।​ इस जिले का कुन्नु चारंग गांव​ चीन सीमा से ​22 किलोमीटर दूर​ है​​​​​​।​​ इसे ही चीन सीमा का आखिरी गांव माना जाता है, क्योंकि इस 22 किमी. के इलाके में कोई आबादी क्षेत्र नहीं है​​​​​​​।​ ​भारत की ओर से चारंग ​गांव तक की सड़क ​भी ​ठीक नहीं है​​​​​​​। ​यहां मोबाइल​ के सिग्नल भी नहीं आते, इसलिए कहीं भी बात करने के लिए भी​ गांव​ से 14 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है​​​​।​ ​हाल ही में चारंग गांव ​के कुछ चरवाहे अर्धसैनिक बल के ​जवानों के साथ गांव से करीब 22 किलोमीटर ऊपर ​चीन सीमा की ओर गए थे​​।​ इन्हीं लोगों ने सबसे पहले तिब्बत क्षेत्र की ओर ​बनाई गई सड़क देखी​​​।​ इसके बाद यहां के ग्रामीणों ने ​6 दिन ​तक चीनी क्षेत्र में रेकी ​की और इसके बाद​ तिब्बत ​सीमा के करीब 20 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण ​किये जाने की जानकारी प्रशासन को दी।​ ​

​इन ग्रामीणों का कहना है कि बीते वर्ष अक्टूबर ​तक तिब्बत ​सीमा के आखिरी ​गांव तांगों तक ही सड़क थी लेकिन इस बार बर्फ हटते ही दो महीने में तिब्बत के तांगों ​गांव से ​​भारत सीमा की ओर 20 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण कर दिया गया है​​।​​ ​अब ​दूसरी ओर सांगला घाटी के छितकुल के पीछे तिब्बत के यमरंग ला की ओर भी सड़क निर्माण किया जा रहा है​​​​।​ कुन्नू चारंग गांव के समीप रंगरिक टुम्मा तक सीमा पार से ​रात होते ही ड्रोन या कोई अन्य यूएफओ ​के आने ​की बात भी सामने आई है​​।​​ बौद्ध भिक्षुओं ने रंगरिक टुम्मा में 8 जून को करीब 20 ड्रोन ​देखे थे​।​ ​यहां ​एक से अधिक संख्या में इस तरह के ड्रोन का आना आम बात हो गई है​​।​ ​ग्रामीणों का कहना है कि रात होते ही​ सड़क का निर्माण कार्य तेज हो जाता है​।​ कार्य शुरू करने से पहले भारतीय सीमा में रेकी करने के लिए ड्रोन छोड़ा जाता है और फिर ​​सड़क निर्माण के लिए​ ​पहाड़ काटने के लिए किये जाने वाले ​विस्फोट की आवाज आती है​​​​।​ ​​

​​सीमा की रेकी कर​के लौटे ​चीन सीमा से सटे ​गांव चारंग के ग्रामीण बलदेव नेगी, जेपी नेगी, विपिन कुमार, भागी राम, नीरज, मोहन आदि ने बताया ​कि अब केवल ​​चीन की ओर​ ​2 किलोमीटर ​​सड़क ​बनना बाकी है। सड़क ​निर्माण का कार्य तेजी से ​करने के लिए 5 पोकलेन ​मशीनें ​व ​कई बड़े​-​बड़े डंपर ​लगाये गए हैं​​​। ​इन ​ग्रामीणों का कहना है कि भारत की ओर से स्थानीय भेड़ पालकों को ​सीमा की तरफ नहीं ​जाने दिया जाता है। अगर भेड़ पालक​ ऊंची पहाड़ियों पर जाते तो सीमा पार की गतिविधियों की जानकारी समय पर ​मिल सकती थी​​​।​ ​अब इस बात को लेकर भी सवाल ​उठ रहे हैं​ ​कि सीमा पर तैनात सुरक्षा तंत्र, नियमित शार्ट रेंज ​और लांग रेंज ​पेट्रोलिंग ​दस्ता क्या कर रहा था, जो ​इन ​गतिविधियों की जानकारी अब तक ​नहीं मिली?​ ​​​​​​सीमांत गांव चारंग पंचायत प्रधान पूर्ण सिंह ​का कहना है कि 20 कि​​लोमीटर सड़क दो माह या 5 माह में ​नहीं बनी है​​।​ पिछले कई साल से निर्माण चल रहा है, ​जिसकी जानकारी ​पहले ​क्यों नहीं जुटाई गई​​?​ उन्होंने मांग उठाई कि आईटीबीपी पोस्ट को चारंग मंदिर से हटाकर फॉरवर्ड पोस्ट यंपू और बीएससफ ढोबार पर भेजा जाए, ताकि चीन की गति​विधियों पर नजर ​रखी जा सके​​​​​।​

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